नाट्यसंगीत द्वारा साधना
Keywords:
भारतीय संस्कृति, नाट्यसंगीतAbstract
जीवन का उद्देश्यः- भारतीय संस्कृति के अनुसार, जीवन का उद्देश्य है, पुरूषार्थ चंतुष्टय (धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष) की प्राप्तिृ। भारत ने ‘अर्थ’ और ‘काम’ की प्राप्ति (सेवन) का कभी निषेध नहीं किया, किन्तु उसने ‘अर्थ’ और ‘काम’ के उपभोग को ‘धर्म’ द्वारा मर्यादित किया, जिससे वह मोक्ष तक पहुंच सके। आहार, निद्रा, भय, मैथुन पशु और मानव दोनों में समान रूप् से जन्मजात विद्यमान रहते हैं। मानव योनि प्राप्त करके भी जो इन्हीं चारों में रमा रहा, वह दो पैरों वाला पशु ही है; जो इन चारों से उपर उठा वह महामानव या अवतार बन गया। मानव को पशु से उपर उठने का काम उसकी ‘धर्म-भावना’ का हैः ‘‘धर्मेणहीनताः पशुभिः समानाः।।‘‘ वैशेषिक दर्शनकार अभ्युदय (लौकिक) और निःश्रेय (पारलौकिक, आध्यात्मिक) की उन्नति हो वह ‘धर्म’ हैः ‘‘यतोभ्युदयानिः श्रेयससिद्धि सधर्मः।।’’