डॉ० जगभगवान शर्मा के साहित्य में वैयक्तिक एवं प्रकृति विषयक संवेदना

Authors

  • हरिस्वरुप

Keywords:

वैयक्तिक संवेदना, व्यक्तिगत भाव, व्यक्ति अन्तर्मुखता

Abstract

प्रकृति और व्यक्ति का सम्बन्ध अभिन्न है। यह तारतम्य रिश्ता आज का नहीं है बल्कि तब से चला आ रहा है जब से संसार का उद्भव हुआ है। सुबह उगते हुए सूर्य की लाली, वर्षा ऋतु में उगड़ती घुमड़ती घटाएं, जंगलों में नृत्य करते मोर, कलकल बहती नदियाँ, पहाड़ों से झर-झर झरनों की मधुर संगीतमय ध्वनि, आकाश में दमकता इन्द्रधनुष, पुर्णिमा की रात की चान्दनी का मनमोहक सौन्दर्य वनों-उपवनों में पक्षियों की चहचाहट, बागों में गुंजते भँवरे, महकते फूलों की खुषबू, टिमटिमाते सितार,े चमकता चाँद, नीलाम्बर और उसमें विभिन्न मुद्राओं में तैरते बादल, हरी-भरी हरियाली आदि असीम नजोर व्यक्ति के मन को आह्लक्षित कर उसके नयनों में समाकर उसमें आनन्द की अनेक तरंगों की शानदार अनुभूति को परावर्तित कर प्रिज्म की भाँति विभिन्न एहसासों का अपवर्तन कर प्रकृति और व्यक्ति की निकटता उनके सानिध्य पूर्ण आत्मिक सम्बन्धों की पुष्टि करते हैं।

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Published

2023-09-18

How to Cite

हरिस्वरुप. (2023). डॉ० जगभगवान शर्मा के साहित्य में वैयक्तिक एवं प्रकृति विषयक संवेदना. Eduzone: International Peer Reviewed/Refereed Multidisciplinary Journal, 12(2), 279–284. Retrieved from https://eduzonejournal.com/index.php/eiprmj/article/view/469