समकालीन कविता में दलित बोध (1990-2000)

Authors

  • मीना कुमारी, डॉ. मनोज कुमार कैन

Abstract

समकालीन दलित कविता ने कविता को कल्पना के आकाश सेयथार्थ की जमीन पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ वर्ग, जातिगत, असमानता, ऊँच-नींच और अस्पृश्यता की नींव पर खड़े समाज को मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टि से समान देखा, समझा और परखा जा सकता है। सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति, परम्पराएँ और व्यवस्थाओं को आदर्श माना जाता है, जिसका बोध हमें हमारे धर्म ग्रंथों से होता है। किंतु जब दलित बोध की बात आती है तो हमारे समाने अनेक प्रश्न उत्पन्न हो जाते हैं। इस विषय में एन॰ एम॰ परमार कहते हैं कि ’’साहित्य की परिभाषा भी हमारे यहां यह है कि ’सहितस्य भावः साहित्य’ तो क्या ये साहित्य सबका कल्याण करता है या दलितों का कोई स्थान उसमें है?

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Published

2023-09-05

How to Cite

मीना कुमारी, डॉ. मनोज कुमार कैन. (2023). समकालीन कविता में दलित बोध (1990-2000). Eduzone: International Peer Reviewed/Refereed Multidisciplinary Journal, 12(2), 189–192. Retrieved from https://eduzonejournal.com/index.php/eiprmj/article/view/447