संत जैतराम की वाणी में रामोपाख्यान
Abstract
संत जैतराम ने राजा रघु से लेकर सीता स्वयंवर एवं वनवास तक की कथा का विशद् वर्णन ‘रामचंदर कीरत कथा’ के अन्तर्गत किया है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना नितान्त आवश्यक है कि संत जैतराम शंकराचार्य की अद्वैतवादी परम्परा के विद्वान् हैं जिनकी वाणी में अद्वैतवाद के सभी आयामों पर विचार किया गया है। संत जैतराम निर्गुण-सगुण की संकीर्णताओं से मुक्त ऐसे महस्वत् संत हैं जिन्होंने दोनों भक्ति-मार्गों को बराबर महत्त्व दिया है। संत शिरोमणि जैतराम ने श्रीराम को ही पूर्ण ब्रह्म माना है जो सज्जनों के परितात्र के लिए और दुष्टों के संहार के लिए अवतार ग्रहण करते हैं। संत जैतराम का मानना है कि हमारा जीवन पवित्र यत्र के समान है, जिसको आसुरी वृत्तियाँ ध्वस्त करने के लिए आतुर-आकुल रहती हैं। यदि हमें जीवन रूपी यज्ञ की निर्विघ्न समाप्ति करनी है तो बल, शौर्य और दृढ़ता का परिचय देना होगा। इन सभी उपादानों का प्रयोग तभी सम्भव है, जब हम आसुरी वृत्तियों के पोषकों के अधम, नीच और कुत्सित, कृत्यों को देखकर क्रोधित हों, क्योंकि बिना क्रोध किये बल, शक्ति, शौर्य और दृढ़ता का सम्यक् प्रयोग नहीं किया जा सकता।