शक्ति-आराधना का स्तोत्रः तुलसी कृत हनुमानबाहुक

Authors

  • प्रो॰ संजीव कुमार चेयर प्रोफ़ेसर, सन्त साहित्य शोध पीठ, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक

Keywords:

स्तोत्र, स्तुति, विक्रमाब्द, औषध, परिलक्षित, दरिद्रता, विपन्नता, नैराश्य, भयंकर, विकराल, अन्तःकरण, भास्वरता, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, पूतना, पिशाचिनी, अक्षय कुमार, रावण, मेघनाद, अकम्पन, कुम्भकर्ण, भक्तशिरोमणि, सम्पोषक, मूल्यहीनता, अमर्यादा, कृपानिधान, पाप, शाप, संताप

Abstract

हनुमानबाहुक’ महाकवि तुलसीदास की उल्लेखनीय कृति है जिसमें महावीर हनुमान जी की स्तुति की गयी है। इस कृति की रचना के पीछे कवि का मूल उद्देश्य स्वयं को रोग-शोक से उपरत करने के लिए कृपानिधान हनुमान जी की स्तुति करना है। तुलसी युगद्रष्टा कवि हैं। वे सजग समाज सुधारक हैं। इस कृति में भी कवि ने हनुमान जी से निवेदन किया है कि वे राक्षस - राक्षसनियों का संहार करके इस समाज को अमर्यादा, अपसंस्कृति, मूल्यहीनता, पापाचार, भ्रष्टाचार, दुराचार आदि रोगों से मुक्त करें। दरिद्रता रूपी रावण का विनाश, भीख जैसी मलिनता की समाप्ति कवि के काव्य का उद्देश्य है। कवि की प्रार्थना है कि करुणा, धैर्य, साहस, बल के अतुलित भण्डार हनुमान जी प्रत्येक व्यक्ति को पाप, शाप और संताप से मुक्ति प्रदान करके उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदत्त करें। समन्वय की विराट् चेतना से आलोकित ‘हनुमानबाहुक’ मूल्यों की स्थापना का काव्य है जिसका विशद् लक्ष्य प्रत्येक व्यक्ति को और समस्त समाज को रोग, शोक, दुःख, दारिद्रय, नैराश्य, उदासी, जड़ता, खिन्नता से मुक्ति प्रदान करके शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ, नीरोग और सुसंस्कृत बनाना है। स्वस्थ काया और विकाररहित समाज ही प्रबल राष्ट्रीय चेतना से उद्भासित हो सकता है।

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Published

2023-05-01

How to Cite

प्रो॰ संजीव कुमार. (2023). शक्ति-आराधना का स्तोत्रः तुलसी कृत हनुमानबाहुक. Eduzone: International Peer Reviewed/Refereed Multidisciplinary Journal, 12(1), 203–207. Retrieved from https://eduzonejournal.com/index.php/eiprmj/article/view/315